Mewad Ka Itihas


मेवाड़ - उदयपुर एवं चित्तौड़ के आसपास के क्षेत्र को मेवाड़ कहते हैं।

मेवाड़ को प्राचीन काल में शिवि जनपद कहा जाता था।

शिवि एक ब्राह्मण जाति थी जो उत्तर भारत से आकर इस क्षेत्र में बस गई। बाद में ये ब्राह्मण क्षत्रिय में परिवर्तित हो गए।

चित्तौड़ का प्राचीन नाम - मध्यमिका

चित्तौड़ में प्राचीन काल में शासन था - मौर्यों का

चित्तौड़ के किले का निर्माण करवाया - चित्रांगद मौर्य (कुम्भा ने बाद में इस किले का पुनर्निर्माण करवाया)

मेवाड़ का प्राचीनतम वंश - गुहिल वंश

गुहिल वंश का संस्थापक - गुहादित्य

गुहिल वंश के अन्य प्रमुख शासक - 1.शिलादित्य 2.अपराजित 3.अल्हण 4.खुमान 5.नरवाहन

गुहिलों की प्राचीनतम राजधानी - नागदा

गुहिल वंश की उपाधि थी - रावल

गुहिल वंश का पहला शक्तिशाली शासक - बप्पा रावल

बप्पा रावल का मूल नाम - कालभोज

बप्पारावल ने चित्तौड़ को मौर्य शासक मानमोरी से जीता था।

चित्तौड़ को गुहिलों की राजधानी बनाया - जैत्रसिंह ने

राजस्थान में सर्वप्रथम सिक्के चलाने का श्रेय - बप्पारावल (सोने के सिक्के)

गुहिल शासकों का कुल देवता - एकलिंग जी

एकलिंग जी मंदिर का निर्माण करवाया - बप्पारावल ने

बप्पारावल की समाधि बनी हुई है - नागदा (उदयपुर)

कहा जाता है कि बप्पा पर हरित ऋषि का आशीर्वाद था।

गुहिल वंश में बप्पारावल के बाद के शासकों में इल्तुतमिश के समय जेत्रसिंह की जानकारी मिलती है।


  • जेत्रसिंह - इल्तुतमिश का आक्रमण
  • समरसिंह - बलबन का आक्रमण
  • रतनसिंह - अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण


गुहिल वंश का अंतिम शासक - रतन सिंह

अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ आक्रमण - 1303 ईस्वी

अलाउद्दीन खिलजी सल्तनत का सबसे शक्तिशाली शासक था।

अल्लाउद्दीन को "सिकंदर सानी" और "द्वितीय सिकंदर" भी कहा जाता था।

अल्लाउद्दीन खिलजी का दरबारी कवि - अमीर खुसरो

अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ पर आक्रमण का प्रमुख उद्देश्य - साम्राज्यवादी नीति

अल्लाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ आक्रमण के समय चित्तौड़ का शासक - रतन सिंह (1303 ई.)

गोरा - बादल - रतन सिंह के दो वीर सेनापति जो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

इस युद्ध में रतन सिंह भी मारा गया।

युद्ध में शहीद होने की घटनाओं को केसरिया कहा जाता है।

रतन सिंह की वीरगति के बाद रतन सिंह की पत्नी एवं किले की अन्य महिलाओं ने सामूहिक आत्महत्या की जिसे जोहर कहा जाता हैं।

केसरिया + जोहर = साका

चित्तौड़ का प्रथम साका 1303 ईस्वी में पद्मिनी के नेतृत्व में हुआ।

अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ जीतने के बाद उसका नाम खिज्राबाद रखा।

अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र की खिज्र खां को चित्तौड़ का शासक नियुक्त किया।


पदमावत के अनुसार -


पदमावत के लेखक - मलिक मोहम्मद जायसी

पदमावत के अनुसार अलाउद्दीन का चित्तौड़ पर आक्रमण का उद्देश्य - पद्मिनी को प्राप्त करना

पद्मिनी के पिता का नाम - गंधर्वसेन / गोवर्धन

पद्मिनी की मां का नाम - चंपावती

गंधर्वसेन शासक था - सिंहल द्वीप(श्रीलंका)

रतन सिंह को पद्मिनी की जानकारी देने वाले तोते का नाम - हीरामन तोता (गागरोनी तोता)

अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर डेरा डाले रखा - 8 माह

पद्मिनी के बारे में अलाउद्दीन खिलजी को जानकारी देने वाले ब्राह्मण का नाम - राघव चेतन


सिसोदिया वंश


सिसोदिया वंश का संस्थापक - हम्मीर (1326 ई.)

सिसोदिया, गुहिलों की शाखा है।

विश्व का सबसे प्राचीन वंश - सिसोदिया वंश (उदयपुर)

सिसोदियाओं की उपाधि - राणा

हम्मीर सिसोदा गांव (राजसमंद) से संबंधित था।

राणा हम्मीर को कहा जाता है -
1. विषम घाटी पंचानन और
2. मेवाड़ का उद्धारक

भामाशाह को भी "मेवाड़ का उद्धारक" कहा जाता है।

मेवाड़ के शासकों को हिंदुओं का सूरज कहा जाता है।


सिसोदिया वंश


हम्मीर (1326-1364)


खेता (क्षेत्रसिंह) (1364-1382)


लाखा (लक्ष्यसिंह) (1382-1421)


राणा चूड़ा                                                               मोकल (1421-1433)
           
                                                                              कुम्भा (1433-1468)

                         ऊदा                                                      रायमल

                                               पृथ्वीराज     सांगा (1509-1527)    जयमल

                                                बनवीर

लाखा (लक्ष्यसिंह) के शासन काल में सर्वप्रथम जावर (सीसा-जस्ता) की खान का पता चला।

राणा लाखा के समय एक बंजारे द्वारा पिछोला झील का निर्माण करवाया गया।

राणा लाखा ने मारवाड़ के राठौड़ वंश के शासक रणमल की बहन हंसा बाई से विवाह किया।

रणमल के पिता का नाम - राव चूड़ा (मारवाड़)

यह विवाह प्रस्ताव राणा लाखा के बड़े पुत्र राणा चूड़ा के लिए आया था।

राणा चूड़ा ने अपने पिता लाखा की बात के लिए कभी भी विवाह न करने की शपथ ली इस कारण राणा चूड़ा को राजस्थान का भीष्म कहा जाता है।

राणा चूड़ा ने हंसा बाई से होने वाले पुत्र के लिए गद्दी छोड़ने की शपथ ली इस कारण राणा चूड़ा की तुलना रघुकुल के राम से की जाती है।

हंसा बाई के पुत्र का नाम - मोकल


महाराणा कुंभा - (1433-1468)


कुंभा का जन्म - 1403 ईस्वी

कुंभा का राज्याभिषेक - 1433 ईस्वी

सारंगपुर का युद्ध - 1437 ईस्वी

सारंगपुर के युद्ध में कुंभा ने मालवा के शासक महमूद खिलजी को पराजित किया।

विजय स्तंभ का निर्माण - 1440-1448 ईस्वी

कुंभा ने विजय स्तंभ का निर्माण मालवा विजय के उपलक्ष्य में करवाया।


विजय स्तंभ / कीर्ति स्तंभ -


मूल रूप से कीर्ति स्तंभ अलग है जिसे जैन मुनि जीजा शाह ने बनवाया।

जीजा शाह द्वारा बनवाए गए कीर्ति स्तंभ को अब जैन कीर्ति स्तंभ कहा जाता है।

जैन कीर्ति स्तंभ तथा विजय स्तंभ (कीर्ति स्तंभ) दोनों ही चित्तौड़ में है।

विजय स्तंभ भगवान विष्णु को समर्पित है।

विजय स्तंभ की ऊंचाई - 120 फुट

विजय स्तंभ में 9 मंजिलें हैं।

विजय स्तंभ को नौखंडा महल भी कहा जाता है।

विजय स्तंभ को "भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष" कहा जाता है।

विजय स्तंभ को "रोम का टार्जन" भी कहा जाता है।

विजय स्तंभ पर तीसरी मंजिल पर 9 बार अल्लाह शब्द लिखा हुआ है।


चंपानेर संधि - (1456 ईस्वी)


गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन एवं मालवा शासक महमूद खिलजी के मध्य कुंभा को पराजित करने के लिए यह संधि हुई।

कुंभा की हत्या - (1468 ईस्वी)

कुंभलगढ़ दुर्ग के अंदर स्थित कटारगढ़ दुर्ग में कुंभा के पुत्र ऊदा ने कुंभा की हत्या कर दी थी।


राणा सांगा - (1509-1527 ईस्वी)


राणा सांगा का राज्याभिषेक - 1509 ईस्वी

सांगा के समकालीन प्रमुख शक्तियां -
1. इब्राहिम लोदी - दिल्ली
2. महमूद बेगड़ा (फतह खां) - गुजरात
3. महमूद खिलजी द्वितीय - मालवा

मांडू प्राचीन नाम है - मालवा का
मांड गायकी प्रसिद्ध है - जैसलमेर

सांगा द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध -


1. खातोली का युद्ध (कोटा) - 1517 ई.


खातोली का युद्ध दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी व सांगा के बीच हुआ इस युद्ध में सांगा विजयी हुआ।


2. गागरोन का युद्ध - 1519 ई.


यह युद्ध मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय और राणा सांगा के मध्य हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा विजयी हुआ।

इस युद्ध में सांगा ने महमूद खिलजी को गिरफ्तार करके छोड़ दिया।

गागरोन युद्ध में सांगा ने महमूद खिलजी से रत्नजड़ित मुकुट व कमरबंद छीन लिया था।


3. बाड़ी का युद्ध (धोलपुर) - 1519ई.


यह युद्ध महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा विजयी रहा। इस युद्ध में इब्राहिम लोदी के दोनों सेनापति हुसैन खां एवं मियां मक्खन मारे गए।


4. पानीपत का युद्ध - 1526ई.


बाबर एवं इब्राहिम लोदी के मध्य

इस युद्ध में भारत में पहली बार बारूद व तोप का प्रयोग किया गया।

बाबर की युद्ध पद्धति - तुगलमा युद्ध पद्धति


5. बयाना का युद्ध - 16 फरवरी 1527ई.


बयाना का युद्ध राणा सांगा एवं मुगल शासक बाबर की सेनाओं के मध्य हुआ इस युद्ध में राणा सांगा विजयी रहा।


6. खानवा का युद्ध - 17 मार्च 1527ई.


राणा सांगा और बाबर के मध्य इस युद्ध में बाबर विजयी हुआ।

खानवा के युद्ध को बाबर ने जेहाद घोषित किया था।

युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।

खानवा युद्ध में सांगा के घायल होने के बाद नेतृत्व किया - झाला अज्जा (कठियावाड़)

खानवा युद्ध में सांगा का साथ देने वाले मुगल शासक हसन खां मेवाती एवं महमूद लोदी

सांगा से बगावत करने वाला राजपूत शासक - सरहिंद तंवर

राजस्थान का प्रथम युद्ध जिसमें सभी शासक एकत्रित हुए - खानवा युद्ध

खानवा युद्ध में राणा सांगा की पराजय के बाद राजपूत शक्तियां 200 वर्षों तक मुगलों के अधीन रही।

खानवा युद्ध में बाबरनामा के अनुसार राणा सांगा की सेना में 2 लाख सैनिक थे।

बाबरनामा पुस्तक की भाषा - तुर्की

खानवा का युद्ध विदेशियों के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन है किसका कथन है - श्रीराम शर्मा

राणा सांगा की मृत्यु - 1558 कालपी के पास बसवा (दौसा)

सांगा की मृत्यु का कारण - सामंतो द्वारा विष देना

सांगा युद्ध करना चाहता था किंतु उसके सामंत या सरदार युद्ध से बचना चाहते थे।

राणा सांगा का अंतिम संस्कार किया गया - मांडलगढ़ (भीलवाड़ा)

राणा सांगा को भग्नावशेष भी कहा जाता है


रतन सिंह द्वितीय - (1528-1531ई.)


राणा सांगा की मृत्यु के बाद रतन सिंह शासक बना।

1531 में विक्रमादित्य शासक बना (रानी कर्णवती संरक्षिका)

1533 ईस्वी में गुजरात के शासक बहादुरशाह का पहला आक्रमण लेकिन बहादुर शाह और कर्णवती में संधि

1534 ईस्वी बहादुर शाह का दूसरा आक्रमण इस आक्रमण में रानी कर्णवती ने सहायता के लिए हुमायूं के पास राखी भेजी।

इस युद्ध के समय रानी कर्णवती ने विक्रमादित्य और उदय सिंह को बूंदी भेज दिया।

बहादुर शाह ने मेवाड़ को जीत लिया और कर्णवती के नेतृत्व में चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ। (1534 ईस्वी)

1534 ईस्वी में हुमायूं ने बहादुरशाह को पराजित किया और विक्रमादित्य को शासक घोषित किया।

1536 ईस्वी में पृथ्वीराज के दासी पुत्र बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी (पृथ्वीराज राणा सांगा का भाई था)

बनवीर ने उदय सिंह को भी मारना चाहा लेकिन पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन की बलि देकर उदयसिंह को बचाया।

उदयसिंह को कुंभलगढ भेज दिया गया उदयसिंह का लालन पालन आशादेवपुरा के यहां हुआ।


महाराणा उदयसिंह - (1537-1572ई.)


सन 1537 में मेवाड़ के सरदारों ने उदय सिंह को अनौपचारिक शासक घोषित कर दिया ।

1540 ईस्वी में मेवाड़ के विश्वस्त सरदारों के सहयोग से उदयसिंह ने बनवीर को मारकर मेवाड़ की सत्ता प्राप्त की।

उदयसिंह को मेवाड़ का शासक बनाने में मालदेव (मारवाड़ का शासक) की विशेष भूमिका रही।

उदयसिंह ने 1559 ईस्वी में उदयपुर नगर बसाया।

1567-68 ईस्वी में मुगलों (अकबर) का मेवाड़ पर आक्रमण।

1568 - चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ

1567-1568 के मुगल आक्रमण के समय उदयसिंह ने युद्ध का नेतृत्व जयमल और फत्ता को सौंपा व स्वयं गोगुंदा चला गया।

अकबर के जीवनकाल का एकमात्र युद्ध जिसमें अकबर ने कत्लेआम का आदेश दिया - 1567-68 (चित्तौड़ आक्रमण)

1572 में गोगुंदा की पहाड़ियों में उदयसिंह की मृत्यु और प्रताप का राज्याभिषेक

राजस्थान में त्याग और बलिदान का प्रतीक माना जाता है - पन्नाधाय को

स्वामी भक्ति का प्रतीक माना जाता है - दुर्गादास राठौड़ (मारवाड़)

अकबर द्वारा मेवाड़ पर आक्रमण के समय उदयसिंह के सेनापति जयमल और फत्ता की वीरता से प्रसन्न होकर अकबर द्वारा आगरा के किले में उनकी गजारूढ़ मूर्तियां बनवाई गई।

राजस्थान में जयमल और फत्ता की मूर्तियां जूनागढ़ के किले में बीकानेर शासक रायसिंह ने बनवाई।

जयमल और फत्ता - मेवाड़ के शासक उदयसिंह के दो वीर सेनापति

1570 ईस्वी - अकबर द्वारा नागौर दरबार का आयोजन

नागौर दरबार के आयोजन का उद्देश्य - सुलह कूटनीति का क्रियान्वयन (राजपूतों को मुगलों के अधीन करने का प्रयास)

अकबर ने इस दौरान नागौर में शुक्र तालाब का निर्माण करवाया।

पदम तालाब - रणथंबोर (सवाई माधोपुर)

अकबर के समक्ष प्रस्तुत न होने वाले प्रमुख शासक - चंद्रसेन (मारवाड़) व उदयसिंह (मेवाड़)

प्रताप का अग्रगामी / भूला-बिसरा शासक - राव चंद्रसेन (मारवाड़)


चित्तौड़ के साके -

  • प्रथम साका - 1303 - रतन सिंह - अलाउद्दीन खिलजी
  • दूसरा साका - 1534 - विक्रमादित्य - बहादुर शाह (गुजरात)
  • तृतीय शाखा - 1568 - उदयसिंह - अकबर


अकबर का अग्रगामी शासक - शेरशाह सूरी

अकबर की सुलह कूटनीति का शिकार प्रथम शासक - भारमल (आमेर)

नागौर दरबार (1570) - अकबर ने राजपूत शक्तियों को बिना युद्ध किए अधीन करने के उद्देश्य से नागौर दरबार का आयोजन किया।

नागौर दरबार में सर्वाधिक स्वामी भक्ति का परिचय बीकानेर के शासक कल्याणमल ने दिया।

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