राजस्थान में वर्तमान में लगभग वन क्षेत्र प्रतिशत - 9.57%
भारत में वर्तमान में वनों का प्रतिशत - 21.02%
सर्वाधिक वन संपदा वाला जिला - करौली (32.77%)
न्यूनतम वन क्षेत्र एवं प्रतिशत वाला जिला - चुरू (0.43%)
राजस्थान में सर्वाधिक वनाच्छादित स्थान - माउंट आबू
राजस्थान में सर्वाधिक वनाच्छादित क्षेत्र - दक्षिण पूर्वी राजस्थान
राजस्थान में देश के कुल वन क्षेत्र का लगभग 4.25%
राजस्थान का स्थान भारत में वन क्षेत्र की दृष्टि से - 9 वा
राज्य सरकार ने वनों के संरक्षण के लिए अधिनियम पारित किया - 1953
राजस्थान की पहली रियासत जिसने वन संरक्षण नीति अपनाई - जोधपुर (1910 में )
प्रशासनिक आधार पर वर्गीकरण -
- आरक्षित वन - लकड़ी काटना एवं पशु चराना पूर्णतः प्रतिबंधित - 38.11%
- रक्षित वन - आंशिक प्रतिबंधित - 55.65%
- अवर्गीकृत वन - जिन पर कोई प्रतिबंध नहीं है - 6.24%
वनस्पति के आधार पर राजस्थान प्रदेश में वन -
1. शुष्क सागवान वन -
यह राजस्थान के कुल वन का लगभग 6.87% हैं। यहां 75 से 110 सेंटीमीटर वर्षा (सागवान वन के लिए जरूरी) होती है। यह वन राजस्थान के दक्षिणी भाग (डूंगरपुर, बांसवाड़ा(सर्वाधिक) ) में पाए जाते हैं।
2. उष्णकटिबंधीय शुष्क (पतझड़ी मिश्रित) वन -
यह राजस्थान के कुल वन का लगभग 28.40% है। यहाँ 50 से 80 cm वर्षा होती हैं। यह वन राजस्थान के दक्षिणी एवं दक्षिणी पूर्वी अरावली पर्वत के मध्य ऊंचाई वाले ढालों पर पाए जाते हैं।
मुख्य वृक्ष - धोकड़ा
3. उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन -
राजस्थान के कुल वन का लगभग 0.38% है। यहां 150 सेंटीमीटर या इससे अधिक वर्षा होती है।
यह वन राजस्थान के केवल माउंट आबू पर्वत सिरोही के चारों ओर लगभग 32 km में फैले हुए हैं।
4. अर्ध उष्णकटिबंधीय/शुष्क/मरुस्थलीय (कांटेदार) वन -
यह राजस्थान के कुल वन का लगभग 6.23 % है। यहाँ वर्षा 30 cm से भी कम होती है। यहां की वनस्पति को "मरूदभिद" कहते हैं।
5. अर्धशुष्क उष्ण कटिबंधीय धोंक वन या कांटेदार वृक्ष व झाड़ी वाले वन -
यह राजस्थान के कुल वन का लगभग 58.12 % है। यहां 30 से 60 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है।
वनों से संबंधित पुरस्कार योजनाएं -
1. अमृता देवी स्मृति पुरस्कार -
वानिकी के क्षेत्र में राज्य सरकार द्वारा दिया जाने वाला वानिकी से संबंधित सर्वोच्च पुरस्कार ।
इस पुरूस्कार का प्रारंभ 1994 में किया गया।
वर्तमान में अमृता देवी स्मृति पुरस्कार दो श्रेणियों में दिया जाता है।
1. वानिकी के क्षेत्र में योगदान के लिए किसी संस्था को पुरस्कार राशि ₹50000
2. वानिकी के क्षेत्र में व्यक्ति विशेष के लिए ₹25000
अमृता देवी का संबंध "विश्नोई संप्रदाय" से हैं।
अमृता देवी के नाम पर अभ्यारण का नाम रखा गया है जो कि जोधपुर में है।
2. वृक्ष मित्र पुरस्कार -
यह पुरस्कार इंदिरा गांधी के जन्मदिवस पर 19 नवंबर को दिया जाता है।
इसको प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र पुरस्कार भी कहते हैं।
यह पुरस्कार परतीय भूमि के विकास के लिए दिया जाता है।
3. महावृक्ष पुरूस्कार -
यह पुरस्कार प्राचीन वृक्षों एवं धार्मिक वृक्षों के संरक्षण के लिए प्रदान किया जाता है।
4. कैलाश सांखला वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार -
राशि ₹50000
वृक्षों से सम्बन्धित जानकारी -
खेजड़ी -
उपनाम - राजस्थान का गौरव / रेगिस्तान का कल्पवृक्ष
इसकी फलियों को सांगरी कहा जाता है।
खेजड़ी की पत्तियों से बना चारा लूम कहलाता है।
खेजड़ी को शेखावाटी क्षेत्र में जांटी साहित्य एवं पुराणों में शमी, छोकड़ा, बन्नी, पेयमेय नामों से भी जाना जाता है।
दशहरे पर खेजड़ी वृक्ष की पूजा की जाती है।
महाभारत के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अपने शस्त्र खेजड़ी के वृक्ष पर छुपाए थे।
खेजड़ी का वृक्ष सलेसट्रना नामक कीड़ा एवं ग्राइकोट्रमा नामक कवक का शिकार हो रहा है।
खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम - प्रोसोपिस साइनेरेरिया
खेर -
खेर वृक्ष के तने की छाल से कत्था प्राप्त किया जाता है।
यह वृक्ष मुख्यतः उदयपुर, चित्तौड़, बूंदी एवं झालावाड़ में पाया जाता है।
आंवला -
आंवला झाड़ी की छाल चमड़ा साफ करने में प्रयुक्त होती है।
खस -
एक विशिष्ट प्रकार की घास है जो कि शर्बत व इत्र बनाने में प्रयुक्त होती है।
उत्पादन टोंक, सवाईमाधोपुर, भरतपुर, करौली
महुआ -
महुआ के फूलों का उपयोग देसी शराब बनाने में किया जाता है।
महुआ आदिवासियों का सबसे पूज्य वृक्ष है।
उपनाम - आदिवासियों का कल्पवृक्ष
कदंब -
यह एक सुगंधित वृक्ष है जिससे गोंद प्राप्त किया जाता है।
बेर -
बेर के वृक्ष पर "लाख के कीड़े" पाले जाते हैं।
लाख के कीड़े का नाम - लेसीफर लक्का
लाख का उपयोग चूड़े एवं ग्रामोफोन बनाने में किया जाता है।
शहतूत -
रेशम के कीड़े पाले जाते हैं।
अर्जुन वृक्ष -
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार पौधा जिससे कृत्रिम रेशम (टसर रेशम) तैयार किया जाता है।
रतनजोत -
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार यह पौधा शुष्क जलवायु क्षेत्र में आसानी से उगाया जा सकता है।
इसका अन्य नाम "जेट्रोफा" है।
इससे बायोडीजल तैयार किया जाता है।
बायोडीजल बनाने की रिफाइनरी उदयपुर (झामर कोटडा) में खोली जा रही है।
होहोबा/जोजोबा -
यह पौधा राजस्थान में इजराइल से लाया गया है।
मुख्य उद्देश्य - मरूस्थलीय प्रसार को रोकना
व्यवसायिक दृष्टि से यह तिलहनी पौधा है।
होहोबा का जन्म स्थान - कैलीफोर्निया (अमेरिका)
होहोबा को पीला सोना भी कहते हैं।
मोपेन -
यह जिम्बाब्वे से लाया गया है।
बांस -
अन्य नाम - आदिवासियों का हरा सोना, सबसे लंबी घास
उत्पादन - आबू पर्वत, बांसवाड़ा, उदयपुर
साल -
उत्पादन - उदयपुर, चित्तौड़, सिरोही, अलवर
तेंदू -
तेंदू के पत्तों का उपयोग बीडी बनाने में किया जाता है।
तेंदू के पत्तों को स्थानीय भाषा में टिमरू कहा जाता है।
महत्वपूर्ण बिंदु -
राजस्थान में सर्वाधिक वन धोकड़ के है।
सागवान का वृक्ष पाला सहन नहीं कर सकता।
राजस्थान का कौनसा स्थान गोंद उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है - चौहटन (बाड़मेर)
राजस्थान में सर्वाधिक सघन वनस्पति वाला स्थान - माउंट आबू
राजस्थान में सर्वाधिक सघन वनस्पति वाला क्षेत्र - दक्षिणपूर्वी राजस्थान
कांटेदार वनस्पति प्रमुख रूप से कहां पाई जाती है - पश्चिम क्षेत्र
घास के मैदान जो कि चारागाह के काम आते हैं - बीड़ अथवा चाही
खस प्रमुख रूप से किस क्षेत्र में पाई जाती है - राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में (भरतपुर, सवाई माधोपुर, करौली)
राजस्थान में वानिकी पुरूस्कार को प्रोत्साहित करने के लिए एकमात्र वृक्ष मेले का आयोजन किया जाता है - खेजड़ली (जोधपुर)
राज्य का सबसे बड़ा वानिकी पुरस्कार - अमृता देवी पुरस्कार
अमृता देवी पुरस्कार खेजड़ली के वृक्ष मेले में दिया जाता है।
वनों की रक्षा के लिये अपने प्राणों की बलि देने वाला संप्रदाय - विश्नोई संप्रदाय
खेजड़ली वृक्ष मेले का आयोजन प्रति वर्ष भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को जोधपुर जिले में किया जाता है।
अमृता देवी ने वन एवं वन्यजीव रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी - 1730 में
अमृता देवी के साथ शहीद होने वाले लोगों की संख्या - 363
विश्नोई संप्रदाय के लोगों द्वारा पेड़ों को काटने से बचाने के लिए जोधपुर जिले में चलाया गया आंदोलन - चिपको आंदोलन
चिपको आंदोलन का प्रेरणा स्रोत - खेजड़ी वृक्ष
अमृता देवी पुरस्कार का संबंध है - वन एवं वन्य जीव संरक्षण से
अरावली विकास परियोजना का महत्वपूर्ण लक्ष्य था - पारिस्थितिकीय संतुलन
मरूस्थल के प्रसार का प्रमुख कारण - वनों की कटाई
फेलते मरूस्थल को रोकने का उपाय - वृक्षारोपण
कृषि वानिकी - कृषि के साथ-साथ वृक्ष लगाने को प्रोत्साहन देना
राज्य में वन रोपण अनुसंधान संस्थान कहां है - जोधपुर
राजस्थान में प्राकृतिक वनस्पति के वितरण को प्रभावित करने वाला एकमात्र कारक - जलवायु की विभिन्नता
राजस्थान में पश्चिमी क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पति - मरुदभिद
मोनोकल्चर क्या है - एक ही तरह के वृक्षों का रोपण
स्मृति वन (झालाना वनखंड, जयपुर) -
उद्देश्य - वृक्षारोपण को मानवीय संवेदनाओं से जोड़ना
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 20 मार्च 2006 को इसका नाम श्री कपूरचंद कुलिस स्मृति वन कर दिया।
स्मृति वन में 9 ग्रहो एवं 27 नक्षत्रों के पेड़ विकसित किए जा रहे हैं।
सत्याग्रह उद्यान - आउवा (पाली)
फ्लोरा ऑफ द इंडियन डेजर्ट के लेखक - प्रो एम एम भंडारी
राज्य में वन्यजीवों की रक्षार्थ पहला बलिदान - सन 1604 में जोधपुर रियासत के रामासडी गांव में करमा व गोरा नामक व्यक्तियों द्वारा दिया गया।
शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (Arid Forest Research Institute) (AFRI) कहाँ स्थित है - जोधपुर
राज्य में चंदन के सर्वाधिक वन किस स्थान पर है - हल्दीघाटी (खमनोर)
चंदन के वन सर्वाधिक किस जिले में पाए जाते हैं - बांसवाड़ा
चंदन के वन सर्वाधिक किस क्षेत्र में पाए जाते हैं - दक्षिणी राजस्थान
"सिर सांटे रुख रहे तो भी सस्ता जाए" किसने कहा है - विश्नोई सांप्रदाय के गुरु जांभोजी ने
राज्य की पहली आंवला नर्सरी - अजमेर
राजस्थान में पर्यावरण अनुकूलन बिंदु को पार करने वाले जिले - उदयपुर, सिरोही
औषधीय महत्व के पौधे तैयार करने के लिए फार्म विकसित किया जा रहा है - बांकी (उदयपुर)
" हर्बल गार्डन" विकसित किया जा रहा है - कोटा
आयुर्वेदिक ड्रग लैबोरेट्री स्थापित की गई है - जोधपुर
औषधीय महत्व के सर्वाधिक पौधे किस अभ्यारण में है - सिरोही
टिश्यू कल्चर पद्धति से वृक्षों की प्रजातियां तैयार की जा रही है - गोविंदपुरा (जयपुर)
ऐसी वृक्षों की प्रजातियां जिन्हें कभी काटा नहीं जा सकता - की स्टोन
वह वृक्ष जो पाला सहन नहीं कर सकता - सागवान
सागवान के वृक्ष किस क्षेत्र में पाए जाते हैं - दक्षिणी राजस्थान
खेजड़ी के वृक्ष पर डाक टिकट कब जारी किया गया - 1988
क्षारीय तथा लवणीय भूमि पर प्रमुख रूप से कौनसा पौधा उगाया जाता है - इमली
पंचकूटा - राजस्थान के लोगों की मनपसंद सब्जी जिसमें पांच प्रकार के सूखे फल या बीज मिले होते हैं।
झालाना वन क्षेत्र, जयपुर को इको-टूरिज्म पार्क के रूप में विकसित किया जा रहा है।
कैक्टस गार्डन - कुलधरा गांव (जैसलमेर)
गोडावण को "ग्रेट इंडियन बस्टर्ड" भी कहा जाता है।
घांस के प्रमुख प्रकार -
सेवण - जैसलमेर के पोकरण में पाई जाने वाली घांस
मोथिया - यह केवलादेव एवं तालछापर में प्रमुख रूप से पाई जाती है।
डाब - डाब प्रमुख रूप से ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए तथा श्राद्ध पक्ष में प्रयोग की जाती हैं।
कुराल और धामण - घांस की प्रजातियां
यह Post पढ़ने के लिए धन्यवाद आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं।
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